सोमवार, 2 जनवरी 2023

दुआओं का असर होता 

हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली  
दुआओं का असर होता  दुआ से काम लेता हूँ

मुझे फुर्सत नहीं यारों कि  माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता  है  उसे मैं थाम लेता हूँ

खुदा का नाम लेने में क्यों  मुझसे  देर हो जाती
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ


मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ


सब कुछ तो  बिका करता  मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े  को सुबह से शाम लेता हूँ  


सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत  का
जितना  है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ  



मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल(शाम ऐ जिंदगी)

 ग़ज़ल(शाम ऐ जिंदगी)


आँख  से  अब  नहीं दिख रहा है जहाँ ,आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ
माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा ,कान मेरे ये दोनों क्यों बहरें हुए.

उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा ,दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.
आग होती है क्या आज मालूम चला,जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.

शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तन्हा मुझे भीड़ चलने लगी.
अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ ,आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..

ज्यों  जिस्म का पूरा जलना हुआ,उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ
एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने,मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए....

 


मदन मोहन सक्सेना


शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

ग़ज़ल ( वो शख्श मेरा यार था)






उनको तो हमसे प्यार है ये कल की बात है 
कायम ये ऐतबार था ये कल की बात है 

जब से मिली नज़र तो चलता नहीं है बस 
मुझे दिल पर अख्तियार था ये कल की बात है 

अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में 
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है 

अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ 
वह पहले बफादार था ये कल की बात है 

जिसने लगायी आग मेरे घर में आकर के 
 वो शख्श मेरा यार था ये कल की बात है 

तन्हाईयों का गम ,जो मुझे दे दिया उन्होनें
बह मेरा गम बेशुमार था ये कल की बात है 



ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 8 मई 2018

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र




प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से



चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र

मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में



क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..                          

एक जमी वख्शी  थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन
हमने सब कुछ बाट दिया है मेरे में और तेरे में

आज नजर आती मायूसी मानबता के चहेरे पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में


जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 27 मार्च 2018

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है





दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है

अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है

दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है

भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
"मदन " हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है

मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 26 मार्च 2018

अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से





प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से

अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

ग़ज़ल (किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना)





दुनियाँ  में जिधर देखो हजारो रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए वह  रास्ते नहीं मिलते

किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मिलते हाथ सबसे हैं दिल से दिल नहीं मिलते

करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते

ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते

कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते हैं
मुश्किल अपनी ये है कि हकीक़त में नहीं मिलते


ग़ज़ल (किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना)

मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

गज़ल (दीवारें ही दीवारें)

गज़ल (दीवारें ही दीवारें)








दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

ग़ज़ल (इस आस में बीती उम्र)


ग़ज़ल (इस आस में बीती उम्र)

कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ


इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस  रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आँखों से मय पीने लगे मानों  की मयखाना हुआ

इस कदर अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आइना ये शख्श  बेगाना हुआ



ढल नहीं जाते है लब्ज यू हीँ  रचना में  कभी
कभी गीत उनसे मिल गया ,कभी ग़ज़ल का पाना हुआ..

 



मदन मोहन सक्सेना