रविवार, 5 जून 2011

ग़ज़ल(दर्द )






ग़ज़ल(दर्द )


दर्द  को अपने से कभी रुखसत न कीजिये
दर्द का सहारा तो बस जीने के लिए हैं

पी करके  मर्जे इश्क में बहका न कीजिये
ख़ामोशी की मदिरा तो बस पीने के लिए हैं

फूल से अलगाब की खुशबु  न लीजिये 
क्या प्यार की चर्चा ,बस मदीने के लिए है

टूटे है दिल ,टूटा भरम, और ख्बाब भी टूटे हुये
क्या ये सारी चीज़े उम्र भर सीने के लिए हैं

वक़्त के दरिया में क्यों प्यार के सपनें बहे 
क्या जज्बात की कीमत  चंद  महीने के लिए है 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना




  


 

2 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द को अपने से कभी रुखसत न कीजियें
    दर्द का सहारा तो बस जीने के लिए हैं ..

    Time never stops. Nice lines.

    जवाब देंहटाएं