रविवार, 5 जून 2011

ग़ज़ल (रंगत इश्क की)



ग़ज़ल (रंगत इश्क की)

रंगत इश्क की क्या है ,ये वह  ही जान सकता है
दिल से दिल मिलाने की ,जुर्रत जो किया होगा

तन्हाई में जीना तो उसका मौत से बद्तर
किसी के साथ ख्बाबों में ,जो इक  पल भी जिया होगा 

दुनिया में न जाने क्यों ,पी -पी कर के जीते है    
बही समझेगा मय पीना, जो नजरो से पिया होगा

दर्दे दिल को दीवाने क्यों सीने से लगाते है
मुहब्बत में किसी ने ,शायद उसको दे दिया होगा..


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

4 टिप्‍पणियां:


  1. कल 08/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हलचल में हमारी पोस्ट शामिल करने का बहुत आभार , धन्यवाद!

      हटाएं