सोमवार, 28 मई 2012

ग़ज़ल(ख्वाहिश)


ग़ज़ल(ख्वाहिश)

गर कोई हमसे कहे की रूप कैसा है खुदा का
हम यकीकन ये कहेंगे  जिस तरह से यार है

संग गुजरे कुछ लम्हों की हो नहीं सकती है कीमत
गर तनहा होकर जीए तो बर्ष सो बेकार है

सोचते है जब कभी हम  क्या मिला क्या खो गया 
दिल जिगर सांसे है अपनी  पर न कुछ अधिकार है

याद कर सूरत सलोनी खुश हुआ करते है हम
प्यार से बो दर्द देदे  तो हमें स्वीकार है 

जिस जगह पर पग धरा है उस जगह  खुशबु मिली है 
नाम लेने से ही अपनी जिंदगी गुलजार है 

ये ख्वाहिश  अपने दिल की है की कुछ नहीं अपना रहे 
क्या मदन इसको ही कहते लोग अक्सर प्यार है


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 

4 टिप्‍पणियां:

  1. याद कर सूरत सलोनी खुश हुआ करते है हम
    प्यार से बो दर्द देदे तो हमे स्वीकार है

    वाह ...बहुत बढिया...

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    1. Thanks a lot for spending time for reading and writing comment. I will feel happy if you join my blog. once again i would like to thank you.

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