ग़ज़ल (नए दौर का आगमन )
आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
वह सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है
सुन चुके हैं बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है
खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है
मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है
आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रश्न लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है
चंद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते कि बेचना जमीर है
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
सभी शेर बहुत उम्दा, बधाई.
जवाब देंहटाएंरचना पसंद करने और बहुमूल्य सन्देश के लिए आप सभी का तहे दिल से हार्दिक आभार .
जवाब देंहटाएंचंद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को...,
जवाब देंहटाएंआज हम आवाज देतें हैं कि बेचना ज़मीर है..
लाज़वाब....
कृपया शीर्षक भी दिया करें
सादर