मंगलवार, 7 अगस्त 2012

ग़ज़ल (आज के हालात )





ग़ज़ल (आज के हालात )

आज के हालत में किस किस से हम शिकवा करें 
हो रही अपनों से क्यों आज यारों  जंग है 

खून भी पानी की माफिक बिक रहा बाजार में
नाम से पहचान होती किस्में किसका रंग है 


सत्य की सुंदर गली में मन नहीं लगता है अब
जा नहीं सकते है उसमें ये तो काफी तंग है


देखकर दुश्मन  भी कहते क्या करे हम आपका
एक तो पहले से घायल गल चुके सब अंग है


बँट  गए है आज हम इस तरह से देखिये
हर तरफ आबाज आती क्या अजीव संग है

जुल्म की हर दास्ताँ को, खामोश होकर सह चुके
ब्यक्त करने का मदन ये क्या अजीव ढंग  है


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
    शुभकामनायें.

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  3. ताज़ा हालात का सटीक चित्रण...सार्थक अभिव्यक्ति के लिए आभार आपका

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    1. बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
      भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद

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  4. मदन मोहन जी बहुत आभार जो आप ने मेरे चिट्ठे का अवलोकन किया !
    भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा!

    धन्यवाद!

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  5. बहुत आभार जो आप ने रचना का अवलोकन किया !
    भविष्य में ऐसी ही कृपा का आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद

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  6. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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