सोमवार, 3 सितंबर 2012

ग़ज़ल(यार का चेहरा मिला)


ग़ज़ल(यार का चेहरा मिला)


हर सुबह  रंगीन   अपनी  शाम  हर  मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला

चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला

नाज अपनी जिंदगी पर क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर  अरमानों  का पत्ता हिला

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया, तन्हाई का अपना किला

वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला

दर्द मिलने पर शिकायत ,क्यों भला करते मदन
जब  दर्द को देखा तो  दिल में मुस्कराते ही मिला

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

13 टिप्‍पणियां:

  1. kya khubsurat gazal pesh ki hai...madan ji behtareen kalaam
    har lafz salike or pur kashish ukera hai
    do baar padha par man nahi bhara......

    Ehsaas

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    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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  2. बहुत सुंदर !
    दर्द मिल गया चलो
    वो भी खुद के दिल में
    पैसे बच गये आपके
    नहीं गये होटल के बिल में !

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    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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  3. चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
    मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला ...

    उनसे नज़र मिल जाए तो चार दिन भी चार सदियाँ लगती हैं ...
    खूबसूरत शेर ...

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    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !

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  5. उत्तर
    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!

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  6. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!

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  7. जीवन में सदैव स्नेह भरा रहे और
    आप सदैव सभी स्थितियों में मुस्कराते रहें!

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