गुरुवार, 13 सितंबर 2012

ग़ज़ल (कैसी बेकरारी है)

 ग़ज़ल (कैसी बेकरारी है)


कुछ इस  तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है
न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है

लाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा  है 
उनसे किस तरह कह दे की उनकी सूरत प्यारी है

निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है

बादल बेरुखी के दिखने पर भी क्यों मुहब्बत में 
हमको ऐसा क्यों लगता की उनसे अपनी यारी है

परायी लगती दुनिया में गम अपने ही लगते है
आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है

ये सांसे ,जिंदगी और दिल सब कुछ   तो पराया है
ब्याकुल अब  मदन ये है की होती क्यों  उधारी  है  



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

6 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है
    न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है....
    परायी लगती दुनिया में गम अपने ही लगते है
    आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है
    हाले दिल यूँ बयां किये कि दिल को छू गए हैं !

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    1. कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है
      न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है....
      परायी लगती दुनिया में गम अपने ही लगते है.khoobsurat gajal waah badhai

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  2. लाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा है
    उनसे किस तरह कह दे की उनकी सूरत प्यारी है ...

    सच है लाचारी में कुछ भी सुझाता नहीं है .... बस मजबूरियाँ ही नज़र आती हैं ..
    लाजवाब शेर है इस गज़ल का ...

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  3. वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे...

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    1. प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!

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