सोमवार, 14 अगस्त 2017

ग़ज़ल (बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें )

 ग़ज़ल (बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें )

बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें

वह  मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें


मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बह हमको
गर अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें


मदन मोहन सक्सेना