बुधवार, 10 जुलाई 2013

ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )

ग़ज़ल ( स्वार्थ की तालीम )
 
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल  से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट  गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने  लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 29 मई 2013

ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )


ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ  )

 
मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ  


रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ  


दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ 


मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ

जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ

ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी  दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना


सोमवार, 15 अप्रैल 2013

ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)


ग़ज़ल(दीवारें ही दीवारें)

दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों 
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है. 

उलझन आज दिल में है ,कैसी आज मुश्किल है 
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं 

जिसे देखो ,बही क्यों आज मायूसी में रहता है 
दुश्मन ,दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं 

जब जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है 
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है 

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब  समय ना है 
कि  रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं 



ग़ज़ल  प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  
 

सोमवार, 25 मार्च 2013

ग़ज़ल(बात अपने दिल की)



ग़ज़ल(बात अपने दिल की)

सोचकर हैरान हैं  हम , क्या हमें अब हो गया है
चैन अब दिल को नहीं है ,नींद क्यों  आती नहीं है

बादियों में भी गये  हम ,शायद आ जाये सुकून
याद उनकी अब हमारे दिल से क्यों  जाती नहीं है

हाल क्या है आज अपना ,कुछ खबर हमको नहीं है 
देखकर मेरी ये हालत  , तरस क्यों खाती नहीं है

हाल क्या है आज उनका ,क्या याद उनको है हमारी 
किस तरह कैसे कहें हम  ,मिलती हमें पाती नहीं है  

चार पल की जिंदगी लग रही सदियों की माफ़िक 
चार पल की जिंदगी क्यों  बीत अब जाती नहीं है

किस तरह कह दे मदन जो बात उन तक पहुंच जाये
बात अपने दिल की क्यों  अब लिखी जाती नहीं है

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 


शुक्रवार, 8 मार्च 2013

ग़ज़ल(अपने दिल की दास्ताँ )






ग़ज़ल(अपने दिल की दास्ताँ )


मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों 
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .


किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे 
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है  ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...


किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम 
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को 
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ 
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......



ग़ज़ल प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना  




 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


 

ग़ज़ल(दिल भी यार पागल)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है 
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं 


सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला  सीखता क्यों है  

कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है 
अक्सर प्यार में मन से, मुझे फिर दीखता क्यों है 

दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को 
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है

आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है 
सही चुपचाप  रहता है और झूठा चीखता क्यों है 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना 


 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )





ग़ज़ल(मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र )

मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की ना  ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है और ना पास है

ये तो हर किसी का  ख्याल  है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूँ  तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयी , काली घटायें छा गयी
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है

 


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना  



सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल (बदलाब )




ग़ज़ल (बदलाब )


जिनका प्यार पाने में हमको ज़माने लगे
वह   अब नजरें मिला के   मुस्कराने लगे

राज दिल का कभी जो छिपाते थे हमसे
बातें  दिल की हमें वह  बताने  लगे 

अपना बनाने को  सोचा  था जिनको
वह  अपना हमें अब   बनाने लगे

जिनको देखे बिना आँखे रहती थी प्यासी
वह  अब नजरों से हमको पिलाने लगे

जब जब देखा उन्हें उनसे नजरे मिली
गीत हमसे खुद ब खुद बन जाने लगे

प्यार पाकर के जबसे प्यारी दुनिया रचाई
क्यों हम दुनिया को तब से भुलाने लगे

गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुने
तब से शायर वह  हमको बताने लगे

हाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोले
मदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगे ...


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना


 

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ग़ज़ल (पहचान)




ग़ज़ल (पहचान)


कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दिखते  नहीं इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त  की साजिश है या फिर बक्त  का एहसान है

गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

ग़ज़ल (बोल)

ग़ज़ल (बोल)



उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..

जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें  ..

जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें ..

अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
 मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी  के यार होलेंगें ..

जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना 
अँधेरे में भी डोलेंगें उजालें में भी डोलेंगें ..
 


ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना